खुले मैदान मैं
हाथ ऊपर उठाए,
खड़े हो जाओ
तो लगता है के,
आसमां सारा
उठा लिया है
अपने हाथों में.
सो, जब भी कभी
ज़िन्दगी बोझ सी
लगने लगती है,
तो चला जाता हूँ
खुले मैदान में, के
अपने हाथों में
कुछ देर,
सारा आसमां उठा लूँ.
हाथ ऊपर उठाए,
खड़े हो जाओ
तो लगता है के,
आसमां सारा
उठा लिया है
अपने हाथों में.
सो, जब भी कभी
ज़िन्दगी बोझ सी
लगने लगती है,
तो चला जाता हूँ
खुले मैदान में, के
अपने हाथों में
कुछ देर,
सारा आसमां उठा लूँ.
No comments:
Post a Comment