Thursday, December 29, 2011

साँस ज़िन्दगी की

ज़िन्दगी ने अपने लिए
एक कोना ढूँढ लिया था
उस अँधेरे से कमरे में.
मुझे पता चला जब तो
मैं भी दीवारों के साथ 
अँधेरे में थप-थपाते हुए
वो कोना खोजने लगा.
श्याम होने को आई है
कमरे के चौथे कोने की
तरफ बढ़ते बढ़ते मुझे
रौशनी की भीनी सी
खुशबू के साथ, मद्धम
हवा की सरसराहट में
एक पत्ता हाथों को
हलके से छूंके उड़ गया.

अर्से बाद बंद कमरे की
घुटन छोड़, आज एक
लम्बी साँस ज़िन्दगी की.


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